अप्रैल के महीने में करें इन उन्नत फसलों की बुवाई और पाए भरपूर लाभ

Rahul Patidar
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अप्रैल माह में खेती से संबंधित जानकारी

अप्रैल एक ऐसा माह हैं जब रबी की फसलों की कटाई होती हैं।और किसान भाई फसलों की बिक्री करके खेती से कुछ समय के लिए मुक्त हो जाता हैं।इसके पश्चात् किसान भाई जायद की फसलों की तैयारी करते हैं।अप्रैल माह में गेहूं की कटाई और जून माह में धान और मक्का की बुवाई के मध्य लगभग 50 से 60 दिन खेत खाली रहते हैं।इस अंतराल में किसान भाई अपने कमजोर खेतों में हरी खाद के निर्माण के लिए जायद की फसलों जैसे – लोबिया , ढेंचा या मूंग आदि की खेती भी कर सकते हैं।इस प्रकार इन फसलों की खेती करके किसान को अधिक लाभ मिलने के साथ-साथ उर्वरकों पर लगने वाले लागत से छुटकारा भी मिलता हैं।इन फसलों से उपज मिलने के पश्चात् किसान धान की रोपाई से एक या दो दिन पूर्व , जून में बुवाई की जाने वाली फसल या मक्का की बुवाई से 10 से 15 दिन पूर्व इस खाद को मिट्टी में जुताई करके मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैं।किसान इस समय खाली खेतों में सब्जियों की खेती , नकदी फसलों की खेती और बागवानी से काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं।आइए , मीडिया 1 द्वारा अप्रैल माह में बोई जाने वाली फसलों से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।

अप्रैल माह में खेतों की मिट्टी की जांच कराए

रबी सीजन की फसलों की कटाई के पश्चात् अप्रैल के माह में खेत खाली हो जाते हैं।अप्रैल के माह में खेत के आसपास के क्षेत्र में स्थित नहर और ट्यूबवेल में पानी की भी जांच अवश्य कराए।इस प्रकार की जांच किसान भाई प्रत्येक मौसम में करवाए ताकि पानी की गुणवत्ता के हिसाब से फसल का चयन करके बुवाई की जा सकें।किसान भाई अपने खाली खेत में मिट्टी की भी जांच कराए।किसान भाई प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार अपने खेतों में मिट्टी की जांच अवश्य कराए ताकि मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व (पोटेशियम , फास्फोरस , सल्फर , मैंगनीज , जिंक , लोहा , तांबा और नत्रजन आदि) की मात्रा और फसल में खाद की मात्रा के माप की जानकारी हो सकें जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार किया जा सके।मिट्टी में जैसे – लवणीयता को जल निकास से , अम्लीयता को चुने से और क्षारीयता को जिप्सम से सुधार किया जाता हैं।इसके साथ ही किसान भाई इस माह में खाली खेत में अपने कमजोर खेतों में हरी खाद के निर्माण के लिए लोबिया , ढेंचा , उड़द या मूंग आदि की खेती भी कर सकते हैं।

अप्रैल माह में बुवाई की जाने वाली फसलें

(1) अरहर की खेती

अरहर की खेती के लिए उन्नत किस्में जैसे – UPAS-120 और T-21 किस्में हैं।अरहर की खेती के लिए मिट्टी हल्की दोमट या मध्यम भारी प्रचुर स्फुर वाली होना चाहिए।अरहर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी उचित जल निकासी वाली मध्यम से भारी काली मिट्टी होना चाहिए।मिट्टी का PH मान 7 से 8.5 के मध्य हो।अरहर की खेती में दो या तीन बार हल से खेत तैयार करना चाहिए।खेत खरपतवार से मुक्त हो और जल निकासी की उचित व्यवस्था होना चाहिए।अरहर की खेती में बीजों को उपचारित करने के लिए राइजोबियम जैव खाद का प्रयोग करें।बीजों को उपचारित करने के पश्चात् बीजों की लगभग 7 किग्रा मात्रा को पंक्तियों में बुवाई करें।पंक्तियों की दूरी 1 फुट होना चाहिए।अरहर की दो पंक्तियों के मध्य एक मिश्रित फसल (उड़द या मूंग) की पंक्ति भी लगा सकते हैं।इन फसलों के पकने की अवधि लगभग 60 से 90 दिन हैं।अरहर की खेती से प्राप्त उत्पादन सिंचित अवस्था में प्रति हेक्टेयर लगभग 25 से 30 क्विंटल और असिंचित अवस्था में प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक होता हैं।

(2) उड़द की खेती

उड़द दलहनी फसलों के अंतर्गत आने वाली फसल हैं।उड़द की खेती के सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है किंतु उड़द की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी होना चाहिए ताकि जल भराव की समस्या ना हो।उड़द की खेती के लिए अम्लीय और क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं होती हैं।उड़द की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी हल्की रेतीली , दोमट और मध्यम प्रकार की मिट्टी होना चाहिए।मिट्टी का PH मान 7 से 8 के मध्य हो।उड़द की खेती के लिए जलवायु की बात करें तो इसके लिए नम और गर्म जलवायु होना चाहिए।वहीं बारिश की बात करें तो अधिक जल भराव वाले क्षेत्र में उड़द की खेती नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक वर्षा उड़द की फसल के लिए हानिकारक होती है।उड़द की फसल के लिए 700 से 900 मिली मीटर वर्षा होना चाहिए।उड़द के पौधों की वृद्धि के समय तापमान 25°C से 35°C के मध्य होना चाहिए।उड़द की खेती में बीजों की मात्रा यदि उड़द की मिश्रित फसल के रूप में बोया जाए तब बीजों की मात्रा लगभग प्रति एकड़ 6 से 8 किग्रा होना चाहिए।
बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए।जैविक तरीके से बीजों के उपचार के लिए लगभग प्रति किग्रा बीज में 5 से 6 ग्राम ट्राइकोडर्मा फफूंदनाशक से बीजों का उपचारित कर लेना चाहिए।बीजों को बुवाई से पूर्व लगभग प्रति किलो बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन M-45 से उपचारित करें।

(3) सोयाबीन की खेती

सोयाबीन एक दलहन फसल हैं।इसकी जड़ों में ग्रंथियां पाई जाती हैं इन ग्रंथियों में वायुमंडल की नाइट्रोजन संस्थापित करने की क्षमता होती हैं।इससे भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैं।सोयाबीन की खेती यदि किसान भाई अप्रैल के माह में करें तो इसमें बीमारियां लगने की संभावना कम होती हैं और फसल बारिश शुरू होने से पूर्व ही अच्छे से तैयार हो जाती हैं। सोयाबीन की उन्नत किस्म RKS-24 हैं। सोयाबीन की खेती में अधिक हल्की रेतीली मिट्टी उपयुक्त नहीं होती हैं।सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी उचित जल निकासी वाली चिकनी दोमट मिट्टी होना चाहिए।जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि जलभराव की समस्या ना हो।

(4) ढ़ैंचा की खेती

ढैंचा एक कम अवधि की हरी खाद की फसल हैं।गर्मी के मौसम में ढ़ैंचा की खेती में 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।गर्मी में ढ़ैंचा की खेती के पश्चात् धान की फसल की रोपाई की जा सकती हैं।ढ़ैंचा की खेती के लिए PH मान 9.5 होना चाहिए।इस प्रकार लवणीय और क्षारीय मिट्टी के सुधार के लिए ढ़ैंचा की खेती उपयुक्त हैं।मिट्टी का PH मान 10 से 5 तक होने पर लीचिंग से या जिप्सम का प्रयोग करके इस फसल को उगा सकते हैं।अप्रैल के माह में खेत खाली रहने पर भी ढ़ैंचा फसल की बुवाई करके 45 से 50 दिन पश्चात् इस खेत में दबाकर इसकी फसल को हरी खाद के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।ढ़ैंचा की फसल की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 80 किग्रा नाइट्रोजन एकत्रित हो जाती हैं।ढ़ैंचा की फसल के पकने की अवधि लगभग 45 दिन हैं।ढ़ैंचा की प्राप्त फसल से लवणीय मिट्टी में 200 से 250 क्विंटल जैविक पदार्थ मिट्टी में मिलाया जा सकता है।

अप्रैल माह में नगदी सब्जियों की खेती

मार्च से अप्रैल माह में इन फसलों के अतिरिक्त कई प्रकार की मुख्य सब्जियों की खेती भी की जा सकती हैं।अप्रैल के माह में खेत खाली होने पर नगदी सब्जियों की खेती करके अच्छा भाव प्राप्त किया जा सकता हैं।अप्रैल माह में बोई जाने वाली सब्जियां इस प्रकार है-

(1) बैंगन की खेती

बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसका सेवन प्रत्येक घर में किया जाता हैं।बैंगन भारत की फसल हैं।बैंगन सोलेनैसी प्रजाति की फसल हैं।प्रत्येक घर में बैंगन का सेवन होने के कारण 12 माह इस की मांग बनी रहती हैं।भारत में बैंगन एक सुप्रसिद्ध सब्जी है और इसकी खेती करना भी सरल होता हैं।बैंगन की खेती गर्मी में करने के लिए उन्नत किस्म पूसा हाइब्रिड-6 हैं।बैंगन की फसल में उचित जल निकासी वाली मिट्टी होना चाहिए।बैंगन के लिए उपयुक्त मिट्टी गहरी दोमट मिट्टी होती हैं।मिट्टी का PH मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए।बैंगन की खेती में बीजों की मात्रा सामान्य किस्मों के लिए प्रति हैक्टेयर लगभग 250 से 300 ग्राम और संकर किस्मों के लिए बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 200 से 250 ग्राम होना चाहिए।बैंगन की गर्मी की किस्म पूसा हाइब्रिड-6 के पकने की अवधि लगभग 60 से 65 दिन हैं।फल का औसत वजन लगभग 200 से 250 ग्राम तक होता हैं।बैंगन की किस्म पूसा हाइब्रिड-6 से प्राप्त उत्पादन प्रति हैक्टेयर लगभग 40 से 60 टन होता हैं।

(2) तोरई की खेती

मार्च और अप्रैल के माह में तोरई की खेती भी की जा सकती है। तोरई की खेती कर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।तोरई की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं जैसे – पूसा सुप्रिया , पूसा चिकनी , पूसा स्नेहा , काशी दिव्या , फुले प्रजतका और कल्याणपुर चिकनी आदि।तोरई की खेती में कार्बनिक पदार्थ से युक्त मिट्टी होना चाहिए।जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।तोरई की खेती के लिए सामान्य PH मान वाली मिट्टी उपयुक्त होती हैं। गर्मी के मौसम में तोरई के पौधे की वृद्धि अच्छी होती हैं।तोरई के पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से अंकुरित होते हैं।तोरई की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 40°C होना चाहिए।तोरई की खेती में बीजों की मात्रा प्रति हैक्टेयर लगभग 3 से 5 किलोग्राम होना चाहिए। तोरई की बुवाई के पश्चात् नमी और तापमान के संरक्षण और बीजों के जमाव के लिए खेत में पलवार का प्रयोग करना चाहिए।तोरई की बुवाई के लिए उपयुक्त विधि नाली विधि हैं।गर्मी के मौसम में तोरई की पूसा चिकनी (घिया तोरई)किस्म की बुवाई की जाती हैं।इस किस्म से प्राप्त फल मुलायम , चिकने और रंग गहरा हरा होता हैं।तोरई की पूसा चिकनी किस्म के पकने की अवधि लगभग 45 दिन हैं।तोरई की इस किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 200 से 400 क्विंटल तक होता है।

(3) लौकी की खेती

सब्जियों की खेती के बारे में बात करें तो लौकी की सब्जी कद्दू के वर्ग की सब्जियों में सबसे मुख्य मानी जाती हैं। लौकी एक कद्दुवर्गीय सब्जी हैं। लौकी सामान्य रुप से दो प्रकार की होती हैं पहली गोल लौकी और दूसरी लंबी वाली लौकी।अनाज वाली फसलों की तुलना में सब्जियों की खेती में ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता हैं।लौकी की विभिन्न किस्में जैसे – पूसा संतुष्टि , पूसा संदेश , पूसा समर , पूसा नवीन , पूसा हाइब्रिड 3 , काशी सम्राट , काशी बहार , काशी कुंडल , काशी कीर्ति , काशी गंगा और नरेंद्र रश्मि आदि हैं।लौकी की हाइब्रिड किस्मों में आने वाली किस्में हैं जैसे – अर्का गंगा , काशी बहार और पूसा हाइब्रिड 3 आदि।लौकी की खेती के लिए मिट्टी अच्छी जल निकासी वाली होना चाहिए। वैसे लौकी की खेती किसी भी क्षेत्र में की जा सकती हैं लेकिन अच्छी जल धारण वाली भूमि उपयुक्त मानी जाती हैं। लौकी की खेती के लिए जीवाश्म वाली हल्की दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती हैं। मिट्टी का PH मान 6 से 7 के बीच हों।लौकी की बुवाई के लिए सही समय वर्षा एवं गर्मी का होता हैं। गर्म एवं आर्द्र जलवायु लौकी की खेती के लिए आवश्यक होती हैं।लौकी की खेती के लिए बेहतर तापमान 30 °C के आसपास का होता हैं। लौकी के बीज जमने लगे उस समय तापमान लगभग 30 से 35 °C तथा जब पौधे बड़ने लगते है उस समय तापमान 32 से 38 °C के बीच होना चाहिए।लौकी की काशी गंगा किस्म की बुवाई अधिकांश रूप से की जाती हैं।लौकी की इस किस्म के पकने की अवधि लगभग 50 से 55 दिन हैं।लौकी की इस किस्म से प्राप्त फल सामान्य आकार के और लंबाई एक से डेढ़ फिट होती हैं।लौकी की काशी गंगा किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हेक्टेयर 400 से 450 क्विंटल तक होता हैं।

(4) करेला की खेती

भारत में अधिकांश किसानों द्वारा करेली की खेती वर्ष में 2 बार की जाती हैं।सर्दी के मौसम में करेले की बुवाई जनवरी और फरवरी माह में और गर्मी में करेले की बुवाई जून और जुलाई माह में की जाती हैं।करेले की विभिन्न किस्में हैं जिसमें मुख्य किस्में इस प्रकार हैं जैसे – कल्याणपुर सोना , कल्याणपुर बारहमासी , अर्का हरित , पूसा विशेष , पूसा दो मौसमी , पूसा हाइब्रिड-2 , पूसा शंकर-1 , पूसा औषधि , पंजाब करेला-1 , पंजाब-14 , प्रिया को -1 , SDU 1 , सोलन हरा , सोलन सफ़ेद , हिसार सलेक्शन और कोयम्बटूर लौंग आदि।करेले की खेती में बालू वाली दोमट मिट्टी और जलोढ मिट्टी सबसे अच्छी होती हैं।करेले की खेती के लिए तापमान 20 °C से 40°C के मध्य होना चाहिए। करेले की खेती में तापमान ज्यादा हो ऐसा जरूरी नहीं हैं, इस खेती में नम भूमि होना जरूरी हैं। करेले की फसल के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु होना चाहिए।
करेले की फसल में पहले जुताई करना चाहिए। खेत को समतल बना लें।खेत में बनाए हुए प्रत्येक थाल में चारों ओर 4 से 5 करेले के बीजों की बुवाई करना चाहिए।बीजों को बोने से 1 दिन पहले पानी में भिगोकर सुखाना चाहिए फिर बुवाई करना चाहिए।बीज के लिए गहराई 2 – 3 सेमी होना चाहिए।करेले के ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व लगभग 12 से 18 घंटे तक पानी में रखा जाता हैं।बीजों की पॉलिथीन बैग में प्रति बैग एक बीज की बुवाई की जाती हैं।करेले की पंजाब करेला-1 किस्म की बुवाई अधिकांश रूप से की जाती हैं।करेले की इस किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल तक होता हैं।

(5) भिंडी की खेती

भिंडी की खेती साल भर में दो बार खरीफ और जायद सीजन में कर सकते हैं।जायद सीजन में भिंडी की बुवाई फरवरी और मार्च के माह में की जाती है।भिंडी की विभिन्न किस्में हैं जैसे – अर्का अनामिका , अर्का अभय , हिसार उन्नत , वर्षा उपहार , परभनी क्रांति , पंजाब पद्मनी , पंजाब-7 , पंजाब-13 , पूसा A-4 और VRO-6(काशी प्रगति) आदि।भिंडी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी होना चाहिए।मिट्टी का PH मान 7 से 7.8 के मध्य होना चाहिए।भिंडी की खेती में तापमान की बात करें तो बीजों को अंकुरित होने के लिए उपयुक्त तापमान 20°C और पौधों के अंकुरित होने के पश्चात् पौधों के विकास के लिए उपयुक्त तापमान 30°C से 35°C होना चाहिए।भिंडी की पंजाब-7 किस्म की बुवाई अधिकांश रूप से की जाती हैं।भिंडी के इस किस्म के पकने की अवधि लगभग 50 से 55 दिन हैं।भिंडी की पंजाब-7 किस्म के फल का आकार सामान्य और रंग हरा होता हैं।भिंडी की पंजाब-7 किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 8 से 20 टन होता हैं।

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