सेब की खेती के बारे में जानिए : सेब की विभिन्न किस्में , तकनीक, रोग और समाधान

Rahul Patidar
12 Min Read

सेब की खेती क्यों करना चाहिए??

भारत में बहुत प्रकार की खेती की जाती है। फलों की खेती में सेब से कम खर्च में अच्छा उत्पादन और लाभ प्राप्त हो जाता हैं। सेब की बाजार में मांग अधिक होने से सेब के बाजार में कीमत अन्य फलों की तुलना में अच्छी होती हैं। सेब रोसासिए कुल का पौधा है।सेब का वानस्पतिक नाम – मैलस प्यूपमिला है। सेब के उत्पत्ति का केंद्र पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप है। सामान्य रूप से सेब के पौधे की ऊंचाई 15 मी. होती है। सेब के पेड़ का आकार फैला हुआ होता है।सेब के पत्ते की आकृति लघु अंकुरों या स्पर्स पर गुच्छेदार होती हैं। इन स्पार्स पर सफेद फूल उगते हैं।

आइए , सेब में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में चर्चा करें

सेब में पाए जाने वाली पोषक तत्वों के बारे में बात करें तो सेब में कई प्रकार के पोषक तत्त्व पाए जाते हैं । स्वस्थ शरीर के लिए भी सेब खाना लाभदायक माना जाता हैं। सेब में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और विटामिन पाए जाते हैं । मरीज को भी डॉक्टर द्वारा सेब खाने को कहा जाता हैं इसलिए ही कहा जाता हैं कि जो 1 सेब प्रतिदिन खाता हैं वो डॉक्टर के पास कभी नहीं जाता है।

देश में सेब की खेती से सम्बन्धित क्षेत्र

भारत में सेब की खेती से मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश , अरूणाचल प्रदेश , नागालैंड , सिक्किम , पंजाब , बिहार , महाराष्ट्र और जम्मू में की जाती हैं।

सेब की विभिन्न किस्में

भारत में सेब की विभिन्न किस्में हैं । सेब की उन्नत किस्मों का चयन जलवायु और क्षेत्र के आधार पर किया जाता हैं। विभिन्न क्षेत्रों के लिए जलवायु के आधार पर अलग – अलग किस्में उगाई जाती हैं। सेब की विभिन्न किस्में इस प्रकार हैं।
जैसे – रॉयल डिलीशियस , रेड स्पर डेलिशियस , टाप रेड , रैड चीफ , रेड जून , रेड गाला , रीगल गाला , रॉयल गाला , वैल स्पर , गोल्डन स्पर , ऑरिगन स्पर , स्टार्क स्पर , सन फ्यूजी , ड फ्यूजी , ब्राइट-एन-अर्ली , अर्ली शानबेरी , ग्रैनी स्मिथ , फैनी , विनौनी , चौबटिया प्रिन्सेज , एजटेक , राइमर और हाइब्रिड 11-1/12 आदि।

हरिमन – 99 किस्म जो हैं सेब की नई किस्म

सेब की नई प्रजाति का नाम हरिमन – 99 हैं जो अच्छी मानी जाती हैं। हरिमन – 99 किस्म के विकास का श्रेय HR शर्मा को जाता हैं जो कि बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) के पनियाला गांव के एक प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ हैं। हरिमन – 99 किस्म 45 – 48°C तक के तापमान को सहन करने की क्षमता रखती हैं इसलिए हरिमन – 99 किस्म की खेती भारत के 22 से 23 राज्यों में की जाती हैं और साथ ही इसका अच्छा परिणाम मिल रहा है।

सेब की खेती में पौधों के रोपण का कार्य कब किया जाए??

सेब की खेती में सेब के पौधे लगाने का समय नवंबर से फरवरी अंत तक हैं। परन्तु पौधों को लगाने का सबसे उचित समय जनवरी और फरवरी का माह हैं इसलिए पौधों की रोपाई जनवरी और फरवरी माह में की जाती हैं ताकि वातावरण अच्छा मिल सकें। जिससे पौधों का विकास अच्छे से हो सकें ।ध्यान रहें नर्सरी से लाए हुए पौधे एक वर्ष पुराने और रोगग्रस्त ना हों।

सेब की खेती में खेत तैयार करने की प्रक्रिया

सेब की खेती में पौधों को जब लगाया जाता हैं उसके पूर्व खेत तैयार किए जाते हैं इसके लिए पौधे लगाने से पूर्व खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई रोटावेटर की सहायता से करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से पलट जाए और भुरभुरी हो जाए फिर जल भराव की समस्या से बचने के लिए ट्रैक्टर में पाटा की सहायता से भूमि को समतल बनाए। जब खेत समतल हों जाए तब गड्ढों को तैयार करें । पौधे रोपण के 1 माह पूर्व गड्ढों को तैयार करें। इन गड्ढों की आपसी दूरी 10 से 15 फीट रखें ।

सेब के पौधे को तैयार कैसे किया जाए??

सेब के पौधे जिनको लगाना हैं उनकी पहले रोपाई होती हैं। सबसे पहले पौधो की रोपाई के लिए पौधे तैयार करें। सेब के पौधों को दो तरीके बीज और कलम द्वारा तैयार किया जाता हैं। इसके लिए प्राचीन पेड़ की शाखाओं को गूटी और ग्राफ्टिंग विधि के द्वारा कलम तैयार की जाती हैं या इन सब को नर्सरी जो सरकारी रजिस्टर्ड हो वहा से खरीदा जा सकता हैं।

सेब के पौधों को खेत में लगाने की प्रक्रिया

सेब के पौधे भी सामान्यतः दूसरे पेड़ की तरह ही लगाए जाते हैं। जब खेत में गड्ढे तैयार कर लिए जाते हैं तब पौधे लगाने चाहिए। गड्ढों में पौधे पानी , खाद और मिट्टी आदि के साथ लगाए। खाद के लिए जैविक खाद का उपयोग करना अच्छा माना जाता हैं जो गोबर से बनाई जाती हैं ।सेब के पौधे लगाने के लिए दूरी 15 x 15 रखें।

सेब के खेती में सिंचाई कैसे की जाए??

सेब के पौधों की सिंचाई के लिए समय का ध्यान रखा जाना चाहिए। सेब के पौधों की प्रथम सिंचाई जब पौधो को लगा दिया जाता हैं उसके पश्चात् करना चाहिए। यदि बारिश का मौसम हैं तब सिंचाई ज़रूरत के हिसाब से करना चाहिए।अगर सर्दी का मौसम हैं तब माह में 2 या 3 बार सिंचाई करें । यदि गर्मी का मौसम हैं तब पौधो में हफ्ते में 1 बार सिंचाई की ज़रूरत होती हैं। सेब की खेती में सिंचाई के लिए ड्रिप एरिगेशन प्रणाली (पाइप का उपयोग कर बूंद के रुप में पानी देना ) के द्वारा सिंचाई कर सकते है और सामान्य रुप से भी सिंचाई की जा सकती हैं।

सेब में लगने वाले रोग और उनका समाधान

सेब में लगने वाले रोग कई प्रकार हैं जो पौधे पर अपना गहरा और नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार के पौधे का विकास रूक जाता है । पौधा संक्रमित होकर फ़ल के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालता हैं और पौधे का विकास रुक जाता हैं।जिससे पौधा संक्रमित हो जाता है। इन रोग का समाधान भी आवश्यक हैं । आइए , इन रोगों और रोग के समाधान के बारे में चर्चा करें।

सफेद रूईया कीट रोग यह कीट रोग पौधों की पत्तियों पर अपना प्रभाव डालता हैं। यह रोग पौधो में लगने से जड़ों में गांठे बन जाती हैं और पत्तियां सुख कर गिरने लगती हैं।
समाधान – इसके लिए मिथाइल डेमेटान या इमिडाक्लोप्रिड का उपयोग कर पौधे को संक्रमण से बचाया जाता हैं ।

सेब क्लियरविंग मोठ रोग इस रोग में पौधे की छाल में छेद हो जाता हैं और नष्ट हो जाता हैं। पौधे की छाल में छेद का कारण लार्वा हैं।
समाधान – सेब क्लियरविंग मोठ रोग के समाधान के लिए 20 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार क्लोरपीरिफॉस का छिडक़ाव करें।

सेब पपड़ी रोग यह रोग फलों और पत्तियों दोनों पर प्रभाव डालता हैं इस रोग के कारण फलों पर धब्बे बन जाते हैं फ़ल फटने लगता हैं।
समाधान – इस रोग के समाधान के लिए मैंकोजेब या बाविस्टिन का छिडक़ाव सही मात्रा में करें।

सेब की खेती में खाद व उर्वरकों का प्रयोग

सेब के खेत को तैयार करने के पश्चात् पौधो को लगाने के लिए बनाए गए गड्ढे में 10 से 15 कि.ग्रा.जैविक खाद(गोबर खाद) को और NPK आधा किलो इन दोनों की मात्रा को मिट्टी में मिला दें। प्रत्येक वर्ष उर्वरकों का उपयोग इसी मात्रा में करें और यदि पौधों का विकास होने लगे तब पौधों के हिसाब से मात्रा बढ़ा दें।

सेब में खरपतवार नियंत्रण एवं निराई – गुड़ाई

सेब के पौधों के अलावा यदि कोई दूसरा अनावश्यक पौधे उग जाते हैं अर्थात् यदि खरपतवार हो जाए तब उन्हें तोड़कर खेत से बाहर फेंक दें । इसके अलावा समय समय पर निराई – गुड़ाई करना चाहिए। आसपास उगी खरपतवार यानि अनावश्यक पौधों को तोडक़र बगीचे से दूर फेंक देना चाहिए। पौधे की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। खाद एवं उर्वरकों का भी उपयोग करना चाहिए।

सेब की कटाई का कार्य

सेब के कटाई का कार्य लगाई गई किस्म के हिसाब से किया जाता हैं क्योंकि अलग – अलग किस्म अलग – अलग समय पर फल देती है। फल कटाई के समय फल एक जैसे और ठोस रुप में होना चाहिए। जब फूल पूर्ण रुप से बन जाता हैं उसके पश्चात् 130 से 135 दिनों के अंतराल में फल पकने लगते हैं। फ़ल जब पकने लगते हैं तब फल के बनावट , फल का रंग परिवर्तित होना , स्वाद में परिवर्तन , गुणवत्ता आदि निर्भर करता हैं। फल पकने के समय उसकी बनावट किस्म पर निर्भर करती हैं फल लाल – पीला रंग के मध्य का हों । सेब के फलों का चयन हाथ से करें ताकि गिरने की वजह से नुकसान ना हों।

सेब से प्राप्त उत्पादन , भाव और मुनाफा

सेब के पेड़ पर फल लगना चौथे वर्ष से शुरू होते हैं। 1 एकड़ भूमि पर सेब के लगभग 400 पौधे लगाए जाते हैं।जलवायू और किस्म के आधार पर एक उचित रुप से तैयार बगीचा लगभग औसत के अनुसार 1 वर्ष में 1 पेड़ से लगभग 10 से 20 किलोग्राम उत्पादन देता हैं।सेब का पौधा 6 वर्ष में पूर्णतः विकसित हो जाता हैं तब हमें अधिक फ़ल मिलने लगते हैं।
सामान्य रुप से सेब का बाजार मूल्य लगभग प्रति किलो 100 से 150 रुपए तक होता हैं इसलिए सेब की खेती से बाजार मांग और उत्पादन के अनुसार अच्छा मुनाफा मिल जाता हैं।

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