पालक की खेती क्यों करना चाहिए??
सब्जियों की खेती में पालक की खेती का विशेष स्थान है। हरी सब्जियों और आयरन वाली सब्जियों में पालक अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। पालक को खाने के कई तरीके हैं। पालक को खाने में कई तरीके से उपयोग में लाया जाता है जैसे – इसे सब्जी के रूप में आलू के साथ बनाकर खाया जा सकता है इसके अतिरिक्त कच्चा सलाद , पालक की कढ़ी , रायता और पालक के पकोड़े बनाकर भी खाया जा सकता हैं। पालक को गाजर के ज्यूस में मिलाकर भी उपयोग में लाया जाता है।
पालक में पूर्ण रूप से आयरन होने के कारण खून की कमी होने पर डॉक्टर द्वारा मरीजों को पालक खाने की सलाह दी जाती हैं। पालक को बगीचे , मिट्टी वाले रिक्त स्थान से लेकर खेत में उगाया जा सकता हैं। किसान भाई पालक की खेती अन्य सब्जियों के साथ भी कर सकते हैं।
आइए , पालक में पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में चर्चा करें
पालक के कई फायदे हैं। पलक का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। पालक के नियमित सेवन से मोटे लोगों को वजन कम करने , शुगर के स्तर को स्थिर बनाने , रक्त परिसंचरण को सही करने और को मजबूत करने में सहायक है। के नियमित सेवन से त्वचा में चमक आती है साथ ही आंखों की रोशनी भी सही हो जाती है।
पालक में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे-कैल्शियम , आयरन , फॉलिक एसिड और विटामिन A , C , K पाया जाता हैं। इसमें विटामिन ए, सी, के , फोलिक एसिड्स, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है। पालक में पानी की मात्रा 91 % तक होती हैं।
पालक के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान
पालक का सेवन निश्चित मात्रा में करना चाहिए।जिस प्रकार से पालक का सेवन शरीर के लिए लाभदायक होता है उसी प्रकार पालक का अधिक सेवन शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है। अधिक सेवन से एलर्जी , त्वचा रोग , खूजली और किडनी की पथरी जैसी बिमारिया हो जाती है। पालक के अधिक सेवन से कैल्शियम की मात्रा बढ़ने पर किडनी में छोटे-छोटे टुकड़े जमा हो जाते हैं जो पथरी का रुप ले लेते हैं। इस कारण पालक के अधिक सेवन से बचें।
पालक की विभिन्न किस्में
पालक की विभिन्न किस्में है किंतु भारत में रूप से दो प्रकार की देशी और विदेशी किस्मों की खेती की जाती है।किसान अपने क्षेत्र के अनुसार और मिट्टी के अनुसार देशी और विदेशी पालक की किस्मों का उपयोग कर सकते हैं।
भारत में पालक की उन्नत किस्मों में पूसा ज्योति , पूसा हरित , आल ग्रीन , जोबनेर ग्रीन और बनर्जी जाइंट हैं।
पालक की खेती में मिट्टी और जलवायु का निर्धारण
खेती के लिए उचित जल निकास वाली मिट्टी होना चाहिए ताकि जलभराव की समस्या ना हो। पालक की खेती में उपयुक्त मिट्टी चिकनी दोमट मिट्टी है। मिट्टी का PH मान 6 से 7 के मध्य हों।
अगर बात करें पालक की खेती में उचित जलवायु की तो सर्दी के मौसम में पालक की वृद्धि अच्छी होती है किंतु जलवायु मध्यम होने पर और उचित वातावरण होने पर सालभर इसकी खेती की जा सकती हैं।अधिक तापमान में पालक की वृद्धि रुक जाती है इसी वजह से पालक की खेती शीतऋतु में करना चाहिए।
खेत को तैयार करने की प्रक्रिया
पालक की खेती में खेत को तैयार करने के लिए पहले उसकी पलेवा करके गहरी जुताई करना चाहिए।जुताई के लिए मिट्टी पलटने वाले हल का उपयोग करें। इसके पश्चात दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर का उपयोग करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें इससे मिट्टी पूर्ण रूप से गहराई तक पलट जाएगी।इसके पश्चात खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें।
पालक की खेती में प्रयोग होने वाले कृषि यंत्र
मिट्टी पलटने वाला हल
हैरो
कल्टीवेटर
सिंचाई यंत्र- स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई
इस मात्रा में बीजों को बोए
पालक की खेती में पर्याप्त मात्रा में बीज की जरूरत होती है अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए और अच्छी गुणवत्ता वाली खेती के लिए उचित और रोग रहित बीजों का उपयोग करना चाहिए इसके लिए उचित और रोग रहित बीजों को खरीदें।
पालक की खेती में बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर में 25 से 30 किलोग्राम होना चाहिए।
उचित जगह से खरीदे पालक के बीज
पालक के प्रामाणिक बीजों की खरीदी करनी चाहिए इसके लिए किसान भाइयों को बीज की दुकान या सरकारी खाद की दुकान से बीजों को खरीदना चाहिए।
इसके अतिरिक्त वर्तमान में कई कंपनियां बीजों को ऑनलाइन भी भेजती है जब किसान भाई बीज खरीदे तब इसकी पक्की रसीद जरूर देखें। हमेशा बीज रोगमुक्त और गुणवत्ता वाले खरीदें। इसके लिए विश्वसनीय बीज की दुकान से ही बीजों को खरीदें।
बुवाई से पूर्व बीजोपचार
पालक की फसल में अंकुरण अच्छा हो और रोग ना लगें इसके लिए बुवाई से पूर्व बीज उपचार कर लेना चाहिए। इसके लिए बुवाई से पूर्व बीजों को 12 से 24 घंटे तक पानी में भिगो देना चाहिए इसके बाद इनको छांव में सुखाकर बुआई करना चाहिए।
कब करें पालक की बुवाई ??
यदि आसपास का वातावरण उचित हो तो पालक की बुवाई साल भर की जा सकती है। पालक की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई जनवरी-फरवरी , जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर में करना चाहिए। यदि देखा जाए तो पालक की खेती के लिए सबसे अच्छा माह दिसंबर होता है।
कैसे करें पालक की बुवाई ??
पालक की बुवाई कैसे करें इस बारे में जानेंगे। अधिकांश किसान पालक की बुवाई के लिए छिटकवां विधि का प्रयोग करते हैं किंतु पालक की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए पालक की बुवाई पंक्तियों में करना चाहिए।
पालक की बुवाई में दूरी का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके लिए पंक्तियों के आपसी दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर और पौधों के आपसी दूरी 20 सेंटीमीटर होना चाहिए और गहराई 2से 3 सेंटीमीटर होना चाहिए । इससे अधिक गहराई पर बीजों को नहीं बोना चाहिए।
कब करें पालक की सिंचाई??
पालक की फसल में सिंचाई कब करें इस बात का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। पालक पत्ते वाली सब्जी है इसके कोमल पत्तों का ही उपयोग किया जाता है पालक के पत्तों की के लिए इसकी सिंचाई करना जरूरी है। पालक की फसल में बुवाई के तुरंत बाद भी हल्की सिंचाई करना चाहिए। पालक की फसल में पत्तों को कोमल बनाए रखने के लिए पर्याप्त नमी होना चाहिए। इसके लिए बुवाई के 15 दिनों के पश्चात 7 से 8 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना चाहिए।
पालक की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किस आधार पर करें??
पालक की फसल में खाद एवं उर्वरकों का निश्चित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग करने से पूर्व मिट्टी के अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए। मिट्टी के आधार पर ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा तय की जा सकती है। सामान्य रूप से मिट्टी का परीक्षण ना होने पर पालक की फसल में प्रति हेक्टेयर 1.50 से 2 क्विंटल यूरिया , 1.50 क्विटंल कम्पोस्ट खाद(सड़ा गोबर) , 1 क्विंटल म्यूरेट ऑफ पोटाश और 2 से 2.50 क्विटंल सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें।
खाद एवं उर्वरकों की इस मात्रा में यूरिया की एक चौथाई मात्रा और कम्पोस्ट खाद(सड़ा गोबर) , म्यूरेट ऑफ पोटाश , सिंगल सुपर फास्फेट की पुरी मात्रा को पहली बार बुवाई के 20 दिन पश्चात् , दूसरी बार फसल की पहली कटाई के पश्चात् और तीसरी बार फसल की दूसरी कटाई के पश्चात् देना चाहिए।
पालक की फसल में खरपतवार नियंत्रण
पालक में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो से तीन बार पालक में निराई गुड़ाई होना चाहिए।
निराई गुड़ाई के अतिरिक्त पालक की फसल में खरपतवार का नियंत्रण के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए इसके लिए प्रति एकड़ फसल में 1 से 1.12 किलोग्राम पायराजोन की मात्रा का उपयोग करें।
पालक की फसल में रोग से बचाव
पत्तों पर गोल धब्बे होने पर रोकथाम
जब पालक के पत्ते पर छोटे गोल आकार के धब्बे हो जाते हैं। पत्तों के किनारों पर लाल और मध्य में सलेटी रंग के धब्बे होने लगे तब इस रोग से रोकथाम के लिए प्रति एकड़ भूमि में 150 लीटर पानी में 400 ग्राम कार्बेनडाजिम या
400 ग्राम इंडोफिल M-45 को मिलाकर छिड़क दें और आवश्यकता होने पर दूसरी बार 15 दिन के पश्चात छिड़क दें।
चेपा रोग होने पर रोकथाम
जब पालक की फसल में चेपा कीट द्वारा होने लगे तब नुकसान होने लगे तब 80 से 100 लीटर पानी में 350 मिलीलीटर मैलाथियॉन 50 EC को मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव के तुरंत 7 दिनों बाद पालक की कटाई नहीं करना चाहिए।
पालक की कटाई का कार्य
पालक की पत्तियों की कटाई का कार्य पत्तियों के कोमल होने पर ही कर लेना चाहिए। पालक की पत्तियों की लंबाई 15 से 30 सेंटीमीटर होने पर इसकी कटाई का कार्य कर लेना चाहिए इस प्रकार पहले की फसल से लगभग 5 से 7 बार कटाई का कार्य किया जा सकता है।
पालक का पैदावार और लाभ
पालक के फसल की जब कटाई हो जाए उसके तुरंत बाद आसपास की मंडियों या बाजार में भेजना चाहिए इसके अतिरिक्त आसपास के होटलों , ढाबों और अन्य स्थानों पर भी इसे भेजा जा सकता है। पालक की पैदावार हरी पत्ती के रूप में प्रति हेक्टेयर 80 से 90 क्विंटल होती है।