चीकू की खेती के बारे में जानिए : चीकू की विभिन्न किस्में , प्राप्त उत्पादन और लाभ

Rahul Patidar
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चीकू की खेती क्यों करना चाहिए??

वर्तमान में किसान रबी और खरीफ की फसलों के साथ बागवानी करना पसंद कर रहे हैं। बागवानी फसल को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा योजनाएं एवं कृषि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। चीकू की खेती से किसान अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यदि उचित रूप से एवं तकनीकी रूप से चीकू की खेती की जाए तो 1 एकड़ भूमि में लगभग 5 से 7 लाख तक का मुनाफा मिल सकता हैं। चीकू के फल में पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। चीकू बागवानी फसल के अंतर्गत आने वाली फ़सल हैं। मध्य अमेरिका और मेक्सिको में चीकू फल की उत्पत्ति हुई है किन्तु वर्तमान समय में भारत देश में भी चीकू की खेती बेहतर तरीके से की जाती हैं। किसान भाई चीकू से अच्छा लाभ कमाते हैं। चीकू बागवानी फसल हैं चीकू के बगीचा के एक बार विकसित होने के बाद हमें कई सालों तक फल मिलते हैं।

आइए , चीकू में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में चर्चा करें ।

चीकू में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। चीकू में एक अलग प्रकार की मिठास की विशेषता होती हैं । चीकू खाने से बवासीर , तनाव , एनीमिया , पेट संबंधित बीमारी , पुरानी खासी और श्वसन तंत्र में राहत मिलती हैं। चीकू का सेवन करने से बीमारियां दूर होती हैं इसलिए स्वास्थ्य के लिए चीकू का सेवन करना फायदेमंद होता हैं। चीकू में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे कैल्शियम , फाइबर , प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , ग्लूकोज़ , टैनिन , विटामिन ए ।

देश में चीकू की खेती से सम्बन्धित क्षेत्र

भारत में चीकू की खेती विभिन्न राज्यों में की जाती हैं। अनुमान के अनुसार भारत में चीकू की खेती लगभग 65 से 66 हजार एकड़ भूमि पर की जाती हैं। चीकू की खेती से सम्बन्धित क्षेत्र मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , आंध्रप्रदेश , महाराष्ट्र , गुजरात , कर्नाटक , तमिलनाडु और केरल हैं।

चीकू की विभिन्न किस्मों के बारे में जानकारी

चीकू की विभिन्न किस्में हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में जलवायू और मिट्टी के अनुसार उगाई जाती हैं। आज हम चीकू की उन्नत किस्मों के बारे में जानेंगे।

पीली पत्ती किस्म – पीली पत्ती किस्म चीकू की एक देर से आने वाली किस्म हैं। इस किस्म में जब फल को पकने में समय लगता हैं। इसमें फल का गुदा बहुत स्वादिष्ट और महक वाला तथा नीचे का हिस्सा हरा और छिलका पतला होता हैं ।अगर फल के आकार की बात करें तो फल समतल , गोलाकार और छोटे होते हैं।

PKM 2 हाइब्रिड किस्म – PKM 2 हाइब्रिड किस्म चीकू की वह किस्म हैं जो अधिक पैदावार के लिए उगाई जाती हैं। यह एक हाइब्रिड किस्म है। पौधे के रोपण के लगभग 3 से 4 वर्ष पश्चात् फल प्राप्त होते हैं। इसमें फल मिठास वाले , रसदार तथा छिलका पतला होता हैं।

काली पत्ती किस्म – चीकू की अधिक उत्पादन देने वाली किस्म काली पत्ती किस्म है। काली पत्ती किस्म का विकास 2011 में हुआ ।इस किस्म को गुजरात और महाराष्ट्र राज्य में ज्यादा की जाती हैं। इस किस्म में जब पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता हैं तब 1 वर्ष में 150 कि.ग्रा. तक उपज प्राप्त हो जाती हैं। इस किस्म से गुणवत्ता वाले फल मिलते हैं तथा एक पूर्ण पके फल में 3 से 4 बीज पाए जाते हैं।

क्रिकेट बाल किस्म – चीकू की इस किस्म को एक अन्य नाम कोलकाता राउंड से भी जाना जाता है। इस किस्म का विकास काली पत्ती किस्म के साथ किया गया है। इस किस्म में जब पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता हैं तब 1 वर्ष में 155 कि.ग्रा. तक उपज प्राप्त हो जाती हैं। इसमें फल गोल और रंग हल्का भूरा होता है। इसमें फल मिठास भरे और छिलका पतला होता हैं।

बारहमासी किस्म – बारहमासी किस्म के पौधे से हमें पूरे वर्ष फल मिल सकते हैं। इस किस्म की खेती उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादा की जाती हैं।इस किस्म में जब पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता हैं तब 1 वर्ष में औसतन 130 से 180 कि.ग्रा. तक उपज प्राप्त हो जाती हैं। अगर आकार की बात की जाए तो इसके फल का आकार मध्यम और गोल होता हैं।

चीकू की इन किस्मों के अतरिक्त भी चीकू की अन्य किस्मों की खेती हमारे देश में की जाती है। इसमें प्रमुख किस्में जैसे जोनावालासा 1 , वावी वलसा , ढोला दीवानी , झुमकिया , पाला , द्वारापुड़ी , कीर्ति भारती, बैंगलोर , DSH – 2 और PKM – 1 आदि हैं।

चीकू की खेती के लिए मिट्टी , जलवायू और तापमान का निर्धारण

चीकू की बागवानी किसी भी प्रकार की गहरी उपजाऊ और जीवाश्म युक्त मिट्टी में की जा सकती हैं। अगर उपयुक्त मिट्टी की बात करें तो अच्छी जल निकास वाली दोमट जो बालू युक्त हों ऐसी मिट्टी चीकू की खेती के लिए अच्छी मानी जाती हैं। चीकू के पौधे की मिट्टी में अम्लीयता और क्षारीयता हल्की होनी चाहिए। मिट्टी का PH मान 5.8 से 8 के मध्य हों।
चीकू के पौधे की जलवायू उष्ण कटिबंधीय होती हैं इसलिए इसके पौधे के लिए जलवायू शुष्क और आर्द्र होना चाहिए। चीकू का पौधा उष्ण कटिबंधीय होने के कारण इसका विकास गर्मी के मौसम में अच्छा होता हैं और इसी कारण ठंडे क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं करना चाहिए। चीकू के पौधे के लिए बारिश 1 साल में लगभग 150 से 200 से.मी. के मध्य होना चाहिए। चीकू के पौधे के आसानी से विकास के लिए समुद्र तल से दुरी लगभग 1000 मीटर या इससे अधिक होना चाहिए।
चीकू के पौधे के लिए तापमान की बात करें तो पौधों की शुरुआत वृद्धि के लिए सामान्य तापमान की ज़रूरत होती हैं।इसके लिए उपयुक्त मौसम 70 % आर्द्रता वाला होता हैं। जब पौधा पूर्ण रूप से तैयार हो जाता हैं तब तापमान 10°C से 40°C के मध्य होना चाहिए।

चीकू की खेती करने की प्रकिया

चीकू की खेती के लिए खेत तैयार करें । इसके लिए पहले 2 से 3 बार कल्टीवेटर या मिट्टी पलटने वाले हल जुताई करें और मिट्टी अच्छी तरह से पलट जाए और भुरभुरी हो जाए इसके लिए 1 से 2 बार रोटावेटर की सहायता से जुताई करें। बारिश के कारण खेत में जल भराव ना हों इसलिए खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें।
अब समतल खेत में पंक्तियां बनाएं और पंक्तियों में गड्ढों को तैयार करें । पंक्तियों की आपसी दूरी 5 से 6 मी. तथा गड्ढों के लिए चौड़ाई 1 मी. और गहराई 2 फीट होना चाहिए।
चीकू के पौधो के रोपण के 1 माह पहले ही गड्ढों को तैयार कर लेना चाहिए। जब गड्ढे तैयार हो जाते हैं तब उनमें जैविक और रासायनिक दोनों खाद को मात्रा के अनुसार मिट्टी में मिला दिया जाता हैं और भर दिया जाता हैं। इसके पश्चात् सिंचाई करें और पुलाव कर गड्ढे ढंक दें।

चीकू की खेती में सिंचाई कैसे की जाए??

चीकू के पौधों के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। यदि पौधों का रोपण बलुई दोमट मिट्टी में किया गया हो तब अधिक पानी की आवश्यकता होती हैं। जब पौधा पुरी तरह से विकसित हो जाता हैं तब 1 साल में 8 से 9 बार सिंचाई की ज़रूरत होती हैं। चीकू के पेड़ को पानी देने के लिए उसके आसपास थाला बनाया जाता है। थाले को इस तरह से बनाया जाता है कि पौधे के तने के चारों ओर 2 फीट दूरी और 2 फीट चौड़ाई पर गोल घेरा बनाया जाता हैं।
बारिश के मौसम में जरुरत के हिसाब से जब वर्षा ना हों तब ही पौधों को पानी देना चाहिए।
सर्दी के मौसम में सिंचाई 10 से 15 दिन में 1 बार करना उचित होता हैं।
गर्मी के मौसम में चीकू के पौधे की सिंचाई 5 से 6 दिन में 1 बार करें और यदि पौधे का रोपण बलुई दोमट मिट्टी में हो तब गर्मी के मौसम में 1 सप्ताह में 2 बार पौधो को पानी देना होता हैं ।

चीकू की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

चीकू की खेती में अन्य फसलों के जैसे ही उर्वरक की आवश्यकता होती है । पौधे के रोपण के समय जब गड्ढों को तैयार किया जाता हैं तब गड्ढों में मिट्टी के साथ जैविक और रासायनिक खाद मिलाना चाहिए । जैविक खाद के लिए 15 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद और रासायनिक खाद के रूप में 100 ग्राम NPK खाद का उपयोग गड्ढों में भरने के लिए किया जाता हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग 2 साल तक इसी मात्रा में खाद का उपयोग करना चाहिए और जब पौधे का विकास होने लगें तब उर्वरकों की मात्रा को भी बढ़ा देना चाहिए।जब पौधा पुरी तरह से विकसित हो जाए लगभग 15 वर्ष पुर्ण होने पर 1 किलो यूरिया , 3 किलो सुपर फास्फेट , 2 किलो पोटाश और 25 किलो जैविक खाद को साल में 2 बार अवश्य देना चाहिए।

चीकू में खरपतवार नियंत्रण एवं निराई – गुड़ाई

चीकू के पौधों में यदि खरपतवार हो जाए तब प्राकृतिक तरीके से खरपतवार को हटाना चाहीए। समय – समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहीए। पुर्ण विकसित पौधे को प्रत्येक वर्ष लगभग 3 से 4 बार निराई और गुड़ाई करने की आवश्यकता होती हैं। चीकू के पौधे के रोपण के लगभग 20 से 25 दिन पश्चात हल्की निराई और गुड़ाई कर देना चाहिए ।

चीकू की बागवानी में तुड़ाई का कार्य

चीकू का पेड़ पूरे वर्षभर उत्पादन देता हैं । प्रमुख रूप से पौधे में नवंबर और दिसंबर माह में फूल आने लगते हैं और फूल आने के लगभग 6 से 7 माह पश्चात् फ़ल पकना शुरु हो जाता हैं मई माह में फल आने लगते हैं। जब चीकू के फल हरे रंग से भूरे रंग के हो जाते हैं तब फलों को तोड़ने का कार्य करना प्रारंभ करें।

चीकू की खेती से प्राप्त उत्पादन और मुनाफा

चीकू के 1 एकड़ खेत में लगभग 300 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। जिससे लगभग 20 टन पैदावार आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। चीकू की उन्नत किस्म अगर लगाई गईं हो तब चीकू से 1 वर्ष में 1 पेड़ से लगभग 130 कि. ग्रा. पैदावार मिल जाती हैं।
चीकू का थोक मूल्य बाजार में प्रति किलो 30 से 40 रुपए तक होता है। इस प्रकार चीकू के इन मूल्यों से 1 एकड़ खेत में 1 बार में 5 से 6 लाख रुपए तक का मुनाफा मिल जाता हैं।

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