आलू में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग से संबंधित जानकारी..
हमारे देश में अधिकांश किसान भाई द्वारा आज भी परंपरागत रूप से खेती की जाती है जिससे किसान भाइयों को अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है।इसका यह परिणाम यह देखने को मिलता हैं कि किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो पाती है।कुछ किसान भाई आधुनिक तकनीक से खेती करते हैं और अच्छा लाभ कमाते हैं।वर्तमान में किसान भाई परंपरागत खेती के स्थान पर सब्जियों की खेती करें जिससे पैदावार में वृद्धि के साथ ही आय में भी वृद्धि हो सके।सब्जियों की खेती में आलू और प्याज की खेती विशेष रूप से की जाती हैं।आलू और प्याज जैसी सब्जियों की बाजार मांग वर्ष भर बनी रहती हैं।किसान भाई आलू और प्याज की खेती से काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। इस वर्ष अधिकांश किसानों ने आलू की खेती की हैं किंतु इस बार आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग(पछेता झुलसा) का प्रकोप दिखाई दे रहा हैं।आलू की फसल में इस रोग से लगभग 10% से अधिक फसल को नुकसान हुआ हैं।किसान भाइयों को आलू की खेती में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग और फसल की सुरक्षा के उपाय के बारे में जानकारी होना चाहिए जिससे प्रारंभ में ही होने वाले नुकसान से बचा जा सकता हैं।आइए , मीडिया 1 द्वारा आलू में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग और फसल की सुरक्षा के उपाय से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।
आलू का लेट ब्लाइट रोग क्या हैं??
आलू का लेट ब्लाइट रोग(पछेता झुलसा) एक कवक जनित रोग हैं।यह कवक एक अविकल्पी परजीवी होता है।इस कवक को विकसित होने के लिए सर्दियों में पौधों के मलबो और कंदों या अन्य धारकों की आवयकता होती हैं।यह कवक पौधे की त्वचा के घावों ओर फटे हुए भागों के माध्यम से पोधे में प्रवेश करता हैं।बसंत ऋतु के समय उच्च तापमान पर फफूंद के बीजाणु विकसित होते हैं।यह बीजाणु हवा और पानी के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैल जाते हैं।इस प्रकार आलू के खेत में एक स्थान पर इस रोग के प्रकोप होने से आसपास के खेतों में भी इसका प्रकोप हो सकता हैं इसलिए समय रहते इस रोग से फसल की सुरक्षा करना आवश्यक हैं।
आलू के लेट ब्लाइट रोग के लक्षण
आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग(पछेता झुलसा) का प्रकोप होने से पौधे में कई प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं।समय पर इस रोग से फसल की सुरक्षा करना आवश्यक हैं।आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग के प्रकोप जो लक्षण हैं वह इस प्रकार हैं-
•आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग का प्रकोप कंदों पर भी दिखाई देता हैं जिससे आलू के कंदों पर नीले और सलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।इस रोग में वृद्धि से आलू के कंद सड़ने लगते हैं।
•आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग के प्रकोप से आलू के पौधों की पत्तियों की सतह के नीचे के भाग में सफेद कवक के आवरण दिखाई देने लगते हैं जिससे पत्तियां मुरझाने लगती हैं और नष्ट हो जाती हैं।
•आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग के प्रकोप से आलू के पौधों की पत्तियों के किनारों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
आलू में लेट ब्लाइट रोग से होने वाला नुकसान
आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग(पछेता झुलसा)के प्रकोप से काफी नुकसान होता हैं।यदि समय रहते आलू के लेट ब्लाइट रोग पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो आलू की फसल में काफी नुकसान हो सकता हैं।इस वर्ष पंजाब में लेट ब्लाइट रोग का प्रकोप देखा गया जिससे 10% से अधिक नुकसान हुआ हैं।इस वर्ष आलू की खेती करने वाले किसानों को दोगुना नुकसान हुआ हैं।एक ओर तो लेट ब्लाइट रोग लगने से 10% से अधिक फसल नष्ट हो गई और दूसरी ओर मंडियों में भी आलू का मूल्य प्रति किग्रा 5 से 6 रुपए था।इसके विपरीत पाकिस्तान में आलू का मूल्य प्रति किग्रा 40 रुपए था।
आलू में लेट ब्लाइट रोग से फसल की सुरक्षा के उपाय
आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग(पछेता झुलसा) का प्रकोप होने पर समय रहते फसल की सुरक्षा के उपाय करना चाहिए जिससे फसल को नुकसान से बचाया जा सके।आलू की फसल में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग से फसल की सुरक्षा के लिए अपनाएं जाने वाले खास उपाय इस प्रकार हैं-
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए आलू की बुवाई उस खेत में ना करें जहां पूर्व में आलू या टमाटर की फसल की बुवाई की गई हों।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए आलू बुवाई के वर्तमान क्षेत्र को पूर्व के वर्ष के क्षेत्र से कम से कम 225 से 450 गज की दूरी पर रखें।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए आलू की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।सामान्यतः देर से पकने वाली किस्में , जल्दी पकने वाली किस्मों की तुलना में अधिक रोग प्रतिरोधी होती हैं।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए उड़ने वाले बीजाणु प्रवेश ना कर सकें इसके लिए खेत को चारों ओर गेहूं से घेर देना चाहिए।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए फसल में ऊपरी सिंचाई नहीं करना चाहिए।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए कम फास्फोरस स्तर और पर्याप्त नाइट्रोजन स्तर का प्रयोग करें।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए रसायनों का प्रयोग कर सकते हैं।इसके लिए कलोरोथलोनिल , मेंडीप्रोपेमिड , मेंकोजेब या फ्लुजिनम का प्रयोग किया जा सकता हैं।मेंकोजेब कवकनाशक का उपयोग आलू की बुवाई से पूर्व और बीजों को उपचारित करने के लिए भी किया जा सकता हैं।
•आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से सुरक्षा के लिए कंदों की खुदाई तब तक ना करें जब तक की कंद पूर्ण रूप से परिपक्व न हो जाएं।
किसानों के लिए विशेष सलाह : किसान भाई आलू की फसल में किसी भी प्रकार का रोग लगने पर अपने क्षेत्र की मिट्टी के अनुसार और नजदीकी कृषि विशेषज्ञों के सलाह के पश्चात् ही कृषि अधिकारी की देखरेख में फसल पर उचित कीटनाशक या उर्वरकों का प्रयोग करें।